Friday 3 April 2015

बदलता वैश्विक परिवेश और सभ्यताओं  के बीच लड़ाई



अंतर्राष्ट्रीय समीकरण काफी तेजी से बदल रहे हैं। पहले दो  ध्रुबों में बटे हुये थे विश्व के देश।  उसके बाद अमेरिका का वर्चश्व रहा। और अब हम बढ़  रहे हैं: सभ्यताओं के बीच लड़ाई (Clash of Civilisations) की ओऱ।

टाइम्स ऑफ इंडिया में छपे आज के लेख "By 2050 India to surpass Indonesia, will have largest Muslim population", जिसमे वाशिंगटन  स्थित PEW RESEARCH FOUNDATION के  अध्ययन /सर्वे को पेश किया गया है। उक्त अध्ययन के अनुसार सन २०५० तक :

१. भारत में मुसलमानों की संख्या  इंडोनेशिया से ज्यादा हो जाएगी और भारत  विश्व में मुसलमानों की सबसे ज्यादा आबादी वाला राष्ट्र बन जायेगा।
२. विश्व में मुसलमानों की संख्या  सबसे तेजी से बढ़ेगी और वह (वर्त्तमान में) लगभग १६० करोड़ से  बढ़कर २८० करोड़ हो जाएगी।
३. इस अवधी में हिन्दुओं की संख्या लगभग ११० करोड़ से बढ़ कर १४० करोड़ होगी तथा ईसाईयों की संख्या २१७ करोड़ से बढ़कर २९० करोड़ हो जाएगी।
४. बौद्ध धर्म के अनुयायियों की संख्या जो कि मुख्यतः चीन, जापान,थाईलैंड आदि में रहते हैं, लगभग स्थिर बनी  रहेगी।

चौकाने बाली बात यह है की एक समुदाय विशेष की जनसंख्या तेजी से बढ़ती जा रही है। विश्व स्तर पर कई क्षेत्रों में तथा भारतीय महाद्वीप के कई भागों  में समुदायों के बीच का डेमोग्राफिक समीकरण काफी तेजी से बदल रहे हैं।
चिंता इस बात को लेकर नहीं है कि किसी समुदाय विशेष की जनसँख्या इतनी तेजी से बढ़ रही है। बल्कि चिंता तो यह है कि उस समुदाय विशेष के अंदर धार्मिक अतिवादिता एवं असहिष्णुता अपने चरम स्तर पर है और अंतर्राष्ट्रीय समाज इसपर काबू पाने में असफल रहा है। विश्व स्तर पर इस तरह के संगठन मानवता के लिये खतरा बनते जा रहे रहे  हैं। ऐसा नहीं है कि ये लोग सिर्फ दूसरे समुदायों के लिए  ही घातक हैं बल्कि ये संगठन अपने समुदाय के लिए भी विनाशकारी हैं। इराक ,सीरिया , पाकिस्तान , अफगानिस्तान आदि देशों की स्थिति किसी से छिपी नहीं है ।जमात उद दावा , अल क़ायदा एवं आई एस  आई एस आदि जैसे संगठन तो किसी के वश में भी नहीं हैं। इनकी क्रूरता के सामने तो पूरी मानवता बेवश दिखती है।

इन परिस्थितियों में विश्व समाज को रास्ता दिखाने का काम भारत की सांस्कृतिक विरासत ही कर सकती है। "बसुधैव कुटुम्बकम " का मार्ग ही उचित मार्ग है जिस पर चलकर विश्व शांति प्राप्त की जा सकती है। अगर ऐसा नहीं होता है तो अगला विश्वयुद्ध विभिन्न देशों के बीच नहीं होगा बल्कि आने बाले समय में होगी - सभ्यताओं के बीच लड़ाई  (क्लैश ऑफ सिबिलाइजेसन )!

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