आज लालक़िले से हमारे आदरणीय प्रधानमंत्री की उद्घोषणा भारत के इतिहास में आज तक दी गई उद्घोषणाओं में सबसे स्वर्णिम रहा। आज ऐसा लगा भारत की राजनीतिक ,सामाजिक आर्थिक पहलुओं के अलावा सांस्कृतिक पहलू गौण रहती थी उन्होंने इसे जीवित किया। वेद से विवेकानंद तक, मोहन के सुदर्शन से मोहन के चरखा तक ,या भीम से भीमराव आंबेडकर तक...... उन्होंने भारत की सांस्कृतिक विरासत जो माँ भारती ने अपने संस्कारों में भारतियों को दिया था हमने उसे सुसुप्त कर रखा था उन्होंने उसे जीवित करने का प्रयास किया। उन्होंने सामजिक,आर्थिक राजनितिक और सांस्कृतिक समीकरणों का एकीकरण किया और एक holistic approach द्वारा उन्होंने लगभग सभी बिंदुओं पर प्रकाश डाला। ..... महिला सशक्तिकरण ,सामाजिक न्याय , राजनीति की कार्य संस्कृति या भारत की आर्थिक सशक्तिकरण , पर्यावरण या भारत की विदेश नीति, पाकिस्तान को कठोर सन्देश, आतंकवाद का समाधान या बलूचिस्तान में हो रहे मानवाधिकार का उल्लंघन के मुद्दे को उठाना या चीन के आर्थिक सशक्तिकरण को चुनौती देना, इन सबके अलावे जो आज के प्रधान मंत्री के भाषण में अतुलनीय था, वह था उनकी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की छाप जो हमारी चिरस्थाई विकास की आधारशिला है।
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