Saturday, 18 February 2017

राष्ट्र -ऋषि परमपूज्य श्रीगुरुजी का कोटि कोटि बंदन।
गुरूजी के कहे गए एक एक शब्द में राष्ट्र के प्रति एक अद्वितीय राष्ट्र भक्ति परिलक्षित  होती है जो आज राष्ट्र के जीवन पद्धति के उचित मार्गदर्शन का कार्य करती है। राष्ट्र को उन्होंने मंदिर माना  और कहा कि इस मंदिर में जो आराध्य देवी बैठी है , वह मातृभूमि है। अवश्य  ही इस नव उदारवाद के युग में व्यक्तिवाद हम पर इतना हावी हो गया है कि गुरुजी द्वारा कहे गए ये शब्द हलके लगें लेकिन इसमे उनकी राष्ट्र के प्रति मार्मिक प्रेम दृष्टिगोचर होता है।
 मुझे गुरूजी के ये शब्द अत्यधिक प्रिये हैं. श्री सदाशिव गोलवलकर (गुरूजी ) कहा करते थे - " मातृभूमि की  भक्ति दो प्रकार से होती है - एक उसकी धूल  माथे पर लगाकर और दूसरी , मातृभूमि की चिंता में तल्लीन रहने से। "


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