योग और हम
ऋग्वेद का एक मंत्र है - ' मनुर्भव ' यानी कि 'मनुष्य बनो ' । योग एक ऐसी साधना है जो मनुष्य को मनुष्य बनाती है। योग के द्वारा मनुष्य के आंतरिक और बाहरी जगत में सामंजस्य स्थापित किया गया है। योग विद्या भारतीय संस्कृति की विश्व को अनमोल देन है। इसे किसी मजहब की संकीर्णता से जोड़ना हमारी नासमझी होगी। आज विश्व जिस रफ़्तार से विकास की उचाईयो को छू रहा है उतनी ही रफ़्तार से सामाजिक प्रदूषण भी बढे हैं , जिसने मनुष्य को उससे उसकी मनुष्यता ही छीन ली है। योग हमें शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ बनाता है और मानसिक और शारीरिक शुद्धिकरण का काम भी करता है जो मानव को उसकी मानवीय गरिमा लौटाती है। अगर विश्व को विकास के संतुलन को कायम रखना है तो योग से जुड़ना होगा जिसमे भौतिकवाद के साथ साथ आध्यात्मिक विकास का भी संतुलन है और ये विकास चिरस्थाई है।
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