आपातकाल के दौरान त्याग की दुहाई देने वाले नेता मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद यादव या नीतीश कुमार ने क्या लोकतंत्र में नैतिकता की मर्यादा की कसौटी पर खड़े उतरने का प्रयास किया है ? या राजनीति में रहकर सत्ता के सुख में ही उस तपस्या को अपनी कसौटी बना रखी है। आज अगर जय प्रकाश नारायण जीवित होते तो इन राजनेताओं द्वारा लोकतंत्र की मर्यादा का हनन देखकर उन्हें बहुत ग्लानि होती । आज बिहार और उत्तर प्रदेश में जिस प्रकार बाहुबलियों द्वारा लोकतंत्र की मर्यादा का अतिक्रमण किया गया है वह इन्ही राजनेताओं की देन है। इनकी त्याग की भावना व्यक्त करना अपने आप में हास्यास्पद होगा। लोकतंत्र के रक्षक नहीं भक्षक बनकर इन लोगो ने राजनीति में रहकर सिर्फ निजी स्वार्थ और सत्ता के सुख का पोषण किया है। आज बिहार और उत्तर प्रदेश में एक कुशल, कर्मठ, ईमानदार व्यक्तित्व की जरुरत है जो इन राज्यों को विकास की और ले जाए न की पुनः उसी जंगल राज की ओर। आज बिहार बिकास के पटल पर पूरे भारत में सभी राज्यों से पीछे छूट गया है। उड़ीसा तथा छत्तीसगढ़ जैसे गरीब राज्य भी काफी तेजी से प्रगति कर रहे हैं। पर बिहार एक अच्छे नेतृत्व के अभाव में लगातार पिछड़ता जा रहा है। लोकतंत्र की जड़ें तभी मजबूत होंगी और बिहार जैसे अति पिछड़े राज्य का विकास तभी संभव है जब हम अपनी भावनाओं में बहकर मतदान नहीं करें बल्कि उसके महत्व का आंकलन करके, तार्किक आधार पर अपने मताधिकार का प्रयोग करें।
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