Saturday 23 January 2016

"अंतर के सयंम के बिना बाहर  का सयंम टिकाऊ नहीं होता। भक्ति और प्रेम के द्वारा मनुष्य निःस्वार्थ हो जाता है। आदमी के मन में जब किसी व्यक्ति  या आदर्श के प्रति प्रेम और भक्ति उपजती है ,,तब ठीक उसी अनुपात में स्वार्थपरता का ह्रास होता है। प्रेमाभ्यस  से मनुष्य क्रमशः सभी संकीर्णताओं के ऊपर उठ कर विश्व में लीन हो सकता है। मनुष्य जैसा सोचता है ,वैसा हो जाता है। जो अपने को दुर्बल ,पापी सोचते हैं वह क्रमशः दुर्बल पापी हो जाते हैं जो अपने आपको शक्तिशाली और पवित्र मानते है वह शक्तिशाली और पवित्र हो उठते है  "..... ........ नेताजी सुभाषचन्द्र   बोस ('तरुणेर स्वप्न' ' )
  महान राष्ट्र भक्तऔर भारतीय संस्कृति के पोषक  सुभाषचन्द्र  बोस को उनकी जयं
ती पर  सत सत नमन। 

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