Saturday 9 January 2016

राम चरित्र की चर्चा अगर शिक्षण संस्थाओं में होने लगे और इस चर्चा में युवाओं की भागीदारी हो तो यह राष्ट्र के लिए सुखद संकेत है। परन्तु  दुर्भाग्यवश दिल्ली विश्वविद्यालय   में राम चरित्र पर चर्चा होने पर भी कुछ वैसे बुद्धिजीवियों, जिनकी ज्ञान की सीमायें  four walls of ivory tower तक ही सीमित  है उनका विरोध करना स्वाभाविक है। हमारे राष्ट्रीय चरित्र  की  नींव तो 'राम चरित्र ' ही है। राम तो निराधार के आधार हैं ।  अगर  भारत  की आध्यात्मिक शक्ति का प्रवाह पूरे विश्व में हो रहा होता तो आज भौतिक  विकास की पराकाष्ठा पर पहुँचे  अमेरिका के राष्ट्रपति  ओबामा की आँखों में 'gun culture' को लेकर आँसू  नहीं होते। जब राष्ट्र का विकास 'spritual alienation' से होकर गुजरता है तो वहाँ  विधायी  शक्तियाँ  कमजोर हो जाती हैं और राष्ट्र खंडित हो जाता है। अतः विवेकान्द का सपना भारत को अध्यात्म गुरु बनाना  साकार होता दिख रहा है  जब  शिक्षण संस्थाओं में युवाओं के  चरित्र पर राम चरित्र का समागम होगा।  

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