जीवन जब नीरस हो जाए
जीवन जब नीरस हो जाए
दया -धार बन आना ,जब माधुरी सभी खो जाए
गीतामृत बन आना
जिस दिन होकर कर्म प्रबलतर ढक ले चारों ओर गरज कर
हे नीरव प्रभु हिय -प्रदेश में शांत चरण धर आना।
अपने को जब बना कृपण मन पड़ा किनारे रहे अकिंचन
हे उदार प्रभु ,द्वार खोल नृप -समारोह से आना।
जब वासना विपुल रज डाले अंध अभुज को बना भुला ले हे पवित्र तुम ,हे अनिद्र तुम रूद्र वेश में आना।
रवीन्द्रनाथ टैगोर (गीतांजलि )
जीवन जब नीरस हो जाए
दया -धार बन आना ,जब माधुरी सभी खो जाए
गीतामृत बन आना
जिस दिन होकर कर्म प्रबलतर ढक ले चारों ओर गरज कर
हे नीरव प्रभु हिय -प्रदेश में शांत चरण धर आना।
अपने को जब बना कृपण मन पड़ा किनारे रहे अकिंचन
हे उदार प्रभु ,द्वार खोल नृप -समारोह से आना।
जब वासना विपुल रज डाले अंध अभुज को बना भुला ले हे पवित्र तुम ,हे अनिद्र तुम रूद्र वेश में आना।
रवीन्द्रनाथ टैगोर (गीतांजलि )
No comments:
Post a Comment