Saturday 12 March 2016

"फिर डंके पर चोट पड़ी है। मौत चुनौती लिए खड़ी है ।
लिखने चली आग अम्बर पर,  कौन लिखाएगा नाम। आनेवाले तुम्हें प्रणाम । "
                                                                  ----- रामधारी सिंह दिनकर

सभी कालखण्डों में राष्ट्र में दो ध्रुव या दो विपरीत विचारधारायें  विद्मान रही हैँ ।  एक सृजन की और दूसरी विध्वंस की। आज राष्ट्र पुनः इन्ही दो विपरीत ध्रुवों के दहलीज पर खड़ा है।  एक जो सृजनात्मक है और दूसरी विध्वंसकारी है। कांग्रेस आज ऐसी ही  नकारात्मक ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करती दिख रही है, चाहे वे गुलाम नबी आज़ाद हों, सोनिआ गांधी या राहुल गांधी हो अथवा जवाहरलालनेहरु विश्वविद्यालय के तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग हो। 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' इनकी नकारत्मक ऊर्जा के श्रोत और  साधन बन गए  हैं। लेकिन वे भूल रहे हैं कि सृजन की बुनियाद सवर्था  राष्ट्र को सभी विध्वंस के  तुफानों  से लड़ने के लिए ऊर्जा प्रदान करती है और अंत में विजय उसी की होती है ।  

"त्याग और सेवा ही भारत का आदर्श है, उसी भाव को पुनः जगा देना चाहिए । बाँकी सब आप ही आप ठीक हो जायेगा ।"                         ------ स्वामी विवेकानंद 

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