Tuesday 29 March 2016

संस्कृति ही राष्ट्र की आत्मा है। राष्ट्र की सांस्कृतिक स्वतंत्रा तो अत्यंत  महत्व की है , क्योंकि संस्कृति ही राष्ट्र के संपूर्ण शरीर में प्राणों के समान संचार करती  है। अतःसंस्कृति की स्वतंत्रा परमावश्यक है , बिना उसके राष्ट्र की स्वतंत्रा निरर्थक ही नहीं टिकाऊ भी नहीं रह सकेगी। भारतीय संस्कृति की पहली विशेषता यह है कि वह संपूर्ण जीवन का , संपूर्ण सृष्टि का संकलित विचार करती है। उसका दृष्टिकोंण एकात्मवादी (Integrated) है। सच्चा सामर्थ्य राज्य में नहीं राष्ट्र में ही रहता है। राष्ट्रीय समाज राज्य से बढ़कर राष्ट्र की आराधना करें। इसलिए जो राष्ट्र के प्रेमी हैं वे राजनीति के ऊपर राष्ट्रभाव का आराधन करते हैं।  राष्ट्र ही एकमेव सत्य है  सत्य की उपासना करना सांस्कृतिक कार्य कहलाता है। राजनीतिक कार्य भी तभी सफल हो सकते हैं ,जब इस प्रकार के प्रखर राष्ट्रवाद से युक्त सांस्कृतिक कार्य की शक्ति उसके पीछे सदैव विधमान रहे।
                   हमर राष्ट्रीयता  भारतमाता है केवल भारत नहीं।   माता शब्द हटा दीजिए तो भारत केवल जमीन  का टुकड़ा मात्र रह जाएगा। इस भूमि का और ममत्व तब आता है , जब माता वाला  संबंध जुडता है यही देश भक्ति है। इस सत्य को हम झुटला नहीं सकते।
               अखण्ड भारत देश की भौगोलिक एकता का परिचायक नहीं अपितु जीवन के भारतीय द्रिस्टीकोण का धोतक है जो अनेकता में एकता के दर्शन करता है। था हमारे लिए अखण्ड भारत कोई राजनीतिक  जो परिस्थिति विशेष में जनप्रिय होने के कारण हमने स्वीकार किया हो बल्कि यह तो हमारे संपूर्ण दर्शन का मूलाधार है। 

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