हमने किसी संप्रदाय या वर्ग की सेवा का नहीं , बल्कि सम्पूर्ण राष्ट्र की सेवा का व्रत लिया है। सभी देशवासी हमारे बांधव हैं। जब तक हम इन सभी बंधुओं को भारतमाता के सपूत होने का सच्चा गौरव प्रदान नहीं करा देंगे ,हम चुप नहीं बैठेंगे। हम भारत माता को सही अर्थों में सुजला ,सुफला बनाकर रहेंगे। वह दशा प्रहरण धारिणी दुर्गा बनकर असुरों का संहार करेगी , लक्ष्मी बनकर जन-जन को समृधि देगी और सरस्वती बनकर अज्ञानांधकार को दूर कर ज्ञान का प्रकाश फैलाएगी। हिन्द महासागर और हिमालय से परिवेष्टित भारतखण्ड में जब तक एकरसता ,कर्मठता समानता , संपन्नता , ज्ञानवत्ता ,सुख और शांति की सप्त जाह्नवी का पुण्य प्रवाह नहीं पा लेते ,हमारा भागीरथ तप पूरा नहीं होगा। इस प्रयास में ब्रह्मा ,विष्णु और महेश , सभी हमारे सहायक होंगे। विजय का विश्वास है , तपस्या का निश्चय लेकर चलें। ......... दीनदयाल उपाध्याय
This is called dedication and accountability towards Mother India. Unless and until every citizen residing in Mother India's lap doesn't take a vow to safeguard the self-respect and cultural and spiritual heritage of the nation, we need to keep awakening them to do their duty irrespective of whatever hurdles comes in their way. This contemporary phase of nationalism which is rising without its cultural foundation. It needs rejuvenation to prevent the moral downslide.
This is called dedication and accountability towards Mother India. Unless and until every citizen residing in Mother India's lap doesn't take a vow to safeguard the self-respect and cultural and spiritual heritage of the nation, we need to keep awakening them to do their duty irrespective of whatever hurdles comes in their way. This contemporary phase of nationalism which is rising without its cultural foundation. It needs rejuvenation to prevent the moral downslide.
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