Saturday 28 March 2015

                      मर्यादा  पुरुषोत्तम  श्री राम 


श्रीराम  एक  प्रकाश  हैं, ज्ञान  के  स्वरुप  हैं  और  विश्राम  भी  हैं।  वे  वेदों  और  भारतीय  संस्कृति  के  प्राण  हैं।  आदि  कवि  श्री  वाल्मिकी  जी   ने  राम  नाम  के  प्रताप  को  पहचाना , जिन्होंने  उल्टा  नाम  'मरा -मरा '
जपकर भी पवित्रता  प्राप्त  की।  राम  एक  जीवन  यात्रा  है , यह  जीवन  जीने  की  एक  पद्धति  है।   राम राज्य  में  सभी  मनुष्य  परस्पर  प्रेम  से  तथा  अपने  धर्मों   की  नीति(मर्यादा)  के  अनुसार   रहते  थे। इस राम राज्य  की हमे अत्यंत आवश्यकता  है।   राम  नाम  एक  मणि  है  और  हमारी सारी  समस्याओं  का  समाधान  है।  राम  नाम  की  महिमा  अकथनीय  है, यह   एक  सुखसागर  है। जब  मनुष्य के जीवन में धर्म का प्राकट्य होता है तब श्री राम जीवन में आते हैं। और  तभी मनुष्य को  वास्तविक आनंद की प्राप्ति होती है। 

 नौमि  तिथि  मधु  मास  पुनीता। सुकल  पच्छ  अभिजित  हरिप्रीता।।
मध्य  दिवस  अति  सीत  न  धामा।  पावन  काल  लोक  बिश्रामा।।


धन्य हैं  हम कि  हमारा जन्म भारतवर्ष में हुआ है| गर्व है हमें हिन्दू होने पर जिसमे उदारता और सहिष्णुता का पाठ सिखाया गया है।  हिमालय के पास ऊँचाई  है पर गहराई नहीं।  समुद्र के पास गहराई है पर ऊँचाई  नहीं । हिन्दू  धर्म में दोनों है। हिन्दू धर्म में आचरण की ऊँचाई  है तथा दर्शन की गहराई है।  धन्य है यह देश जहाँ प्रभु का अवतरण मानव स्वरुप में होता है ताकि हम मानव की तरह जीना सीखें। राम धर्म के मूर्तिमाण स्वरूप हैं । श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं।  धर्म का एक स्वरुप मर्यादा भी है। श्रीराम की मर्यादा  जीवन के हर क्षेत्र में आए यही रामनवमी है। मर्यादा हमारे आचरण  व्यबहार में आ जाये तो इससे व्यक्ति , परिवार , समाज , राष्ट्र , विश्व का कल्याण होगा। नदियाँ  और समुद्र अगर अपनी  मर्यादा में रहती है तभी कल्याणकारी कार्य करती है। परन्तु जब नदियाँ अपनी मर्यादा को तोड़ती हैं तो विनाश लाती है।  इसी प्रकार से मनुष्य जब अपनी मर्यादा में रहता है तो मंगलकारी होता है। 
राम सत्य हैं  और धर्म का स्वरुप भी सत्य पर आधारित है। और इसी सत्य से परस्पर आत्मीयता के बीज प्रस्फूटित होते हैं।  अपने अंदर के आसुरी शक्तियों को मारना ही सही मायने में रामनवमी मानना है।

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