Sunday 15 March 2015

धर्म की खोज !

हम भारतीय, धर्म को सभ्यता और संस्कृति का पर्याय मानते हैं । धर्म हमारी  जीवन शैली को मर्यादित करती है । अतः यह जीने की कला है जो मानवीय मूल्यों को  निरंतर जीवित रखने  का प्रयास करती है। आज हम इतनी  विविधता में भी  एकता स्थापित करके  निरंतर प्रगति की और  बढ़ रहे हैं, यह हमारे धर्म की गुणवत्ता ही है । धार्मिक मूल्यों ने मानव को परस्पर प्रेम और सहिष्णुता के वशीभूत करके  एकता का सूत्र स्थापित किया है । आज विडम्बना यह है पाश्चात्य आँखों से जब- जब हम  देखते हैं  तो धर्म हमें  नकारात्मक  ऊर्जा  की ओर  अग्रसर करता है और धर्म की परिभाषा भी मजहब में सिमटकर रह जाती है । जो घृणा , द्वेष को प्रस्फूटित करती है। धर्म में सहिष्णुता उसकी केंद्र बिंदु  है । जो कि  पाश्चात्य संस्कृति में देखने को नहीं मिलता  और उसी कारण   वहाँ धर्म की परिभाषा  सीमित है।  इसके विपरीत भारतीय संस्कृति में धर्म का केंद्र विंदू सहिष्णुता है जो धर्म को निरंतर आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान कर उसका फैलाव करता है, जो आपस में भाईचारे की भावना को जीवित रखने  का प्रयास निरंतर करता रहता  है । धर्म को दूषित  करने का प्रयास हम पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव में आकर कर रहे हैं । धर्म की व्यापकता को समझने के लिए हमें सनातन धर्म की व्यापकता को समझना अत्यावश्यक  है । सनातन संस्कृति को समझने के लिए हमें अपने ह्रदय के दरवाजे खोलने होंगे ।


(Sabri brought and offered to Sri Ram the most delicious bulbs , roots, and fruits. The Lord partook of them again and again , without any hesitance or discrimination even though she belonged to the wild tribe SABARAS  , a very lowly class. This surely shows us that sanatan dharma believes in deeds and not casteism or class differentiation )



(According to the BHAGWATAM  Ajamila was a man of very bad deeds,yet the Lord forgave him for just uttering the name of god NARAYANA NARAYANA .This exhibits the openness , forgiveness and acceptance of  SANATAN DHARMA)



सनातन धर्म जागृत अवस्था का ही एक अंश है जो हमें विवेक की ओर सर्वथा अग्रसर होने के लिए संकेत करती है । इसलिए सनातन धर्म हमें जीवन जीने की कला सिखाती है । अगर हम खुली आँखों से सनातन धर्म को समझें तो सनातन धर्म मर्यादित जीवन जीने और विवेकपूर्ण जीवन जीने का संयोग है।

अपनी रुचि से चलने वाले धर्म हमेशा आतंकवाद जैसे  विध्वंशक विचारधारा को जन्म देते हैं और नीति से चलने वाले धर्म मानवीय मूल्यों को जीवित रखने का सर्वथा प्रयास करते हुए सृजन का कार्य करते हैं । सनातन धर्म एक संस्कृति है । संस्कृति का अर्थ है अच्छा आचरण । सनातन धर्म में अच्छे आचरण और मर्यादापूर्ण जीवन प्राकृतिक नियमों के अनुकूल चलने की ओर विशेष ध्यान दिया गया है । लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण है कि  जो सनातन धर्म सांस्कृतिक मानव बनाने का प्रयास करती है उसके मूल्यों पर ही  हम प्रश्न वाचक चिन्ह लगा रहे हैं । और जो वुराईयाँ  सनातन धर्म का पहचान नहीं हैं उसे भी सनातन परंपरा से जोड़कर  उसकी गरिमा को ख़त्म करने का प्रयास कर रहे हैं । जब हम सनातन धर्म ग्रंथों का स्वाध्याय करके उसकी महत्ता को समझेंगे और उसे जीने की कोशिश करेंगे तो कदापि विवेकानंद का सपना भारत को आध्यात्म गुरु बनाना संभव होगा ।

सनातन संस्कृति पर मजहब की संकीर्णता , जातिप्रथा , अंधविश्वास इत्यादि बुराइयों को जोड़कर देखा जा रहा है  जो की कदाचित गलत है । सनातन संस्कृति ही तो धर्म का सही पहचान कराती है । सनातन धर्म हमें सर्वप्रथम चित्त के शुद्धिकरण पर जोड़ देती है और पढ़ने और विचरने की अपेक्षा  जीवन में आचरण पर अधिक जोड़ देती है । मानवसेवा ही सनातन परंपरा है । सनातन संस्कृति जो निरंतर आध्यात्मिक ऊर्जा का सृजन करती है,  जिसके  आधार पर ही विवेकानंद भारत को विश्व का आध्यात्मिक गुरु बनाना चाहते थे ।





No comments:

Post a Comment