Thursday 31 December 2015


"सत्यम परम धीमहि"
यत्र योगेश्वरः  कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः ।
तत्र श्रीर्विजयो  भूतिध्रुवा नीतिर्मतिर्मम  । .
Wherever there is Bhagvan sri Krisna, the Lord of Yoga ,and wherever there is Arjuna, the wielder of the Gandiva bow, goodness,victory,glory and unfailing righteousness are there :such is my conviction.(The Bhagavad Gita)

तमसो मा ज्योतिर्गमय ॥
ओम तत  सत ॥  नेति नेति ॥ चरैवेति  चरैवेति ॥
2016 भारतवर्ष  और पूरे विश्व के लिए मंगलमय  हो । 
भारतीय मनीषि अरविंद के अनुसार "सच्ची आध्यात्मिकता किसी नए  प्रकाश को ,हमारे आत्मविकास के किसी अतिरिक्त साधन अथवा सामग्री को अस्वीकार नहीं करती। उसका सीधा अर्थ है अपने केंद्र को ,अपने अस्तित्व के तात्विक आचरण को , अपने जन्मजात स्वाभाव को बनाई रखना और जो कुछ भी करें या सृजित करें यदि चाहें तो भारत उन समस्याओं को नया और निर्णायक मोर    दे सकता हैं ,जिनके ऊपर मानव जाती परिश्रम कर रही है ,क्योंकि उनके हल का सुराग उसके प्राचीन ज्ञान में है। वह अपने नवजागरण के अवसर की उचाईं तक उठ पता है अथवा नहीं ,यह उसके भाग्य का प्रश्न है। "
                                   भारत का पुनजन्म
मगलमय २०१६ 
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का निचोड़ :
1)आध्यात्मिक चेतना का  विकास :"सत्यम वद ,
                                                       धर्मम चर
                                                      स्वाध्यानम् प्रमदः
 2)  प्रगतशील जीवन दर्शन :            "चरैवेति चरैवेति "
3)    एकत्व का दर्शन :                    सम गच्छध्वम् ,सम वद्धवम् सम वो मनांसि जानताम।
                                                     देवाम भागम यथा पूर्वे ,संजानाना उपासते। ..(ऋग्वेद )
अर्थात मनुष्यों  मिलकर  चलो  तथा मिलकर बोलो। तुम्हारे मन एक प्रकार के विचार करें। जैसे प्राचीन देवों और विद्वानो ने एकमत होकर अपने -अपने भाग्य  को स्वीकार किया , उसी प्रकार तुम भी एकमत होकर अपना भाग्य  स्वीकार करो।
4 ) सर्व कल्याण :                           सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः।
अतः हमें अपनी बौद्धिक मूर्छा का त्याग कर राष्ट्र की अस्मिता को बचाना होगा तथा कठोर तप ,सयंम  से भारतीय ऋषियों द्वारा प्राप्त इस राष्ट्र के  सृजन के कार्यों को और भी ढृढ़ करना होगा और यही संकल्प लेकर आगे बढ़ना होगा। 

Sunday 27 December 2015

"अखंड भारत देश की भौगोलिक एकता का ही परिचायक नहीं अपितु जीवन के भारतीय दृष्टिकोण का घोतक है ,जो अनेकता में एकता के दर्शन  करता है। अतः हमारे लिए अखंड भारत कोई राजनीतिक नारा नहीं जो परिस्थिति विशेष में जनप्रिय होने के कारण  हमने स्वीकार किया हो बल्कि यह तो हमारे सम्पूर्ण दर्शन  का मूलाधार है।"
    हमारे राष्ट्र की प्रकृति है - "अखंंड भारत " खंडित विकृति है. आज हम विकृति में आनंदनुभूति का धोका खाना चाहते हैं किन्तु आनंद मिलता नहीं। यदि हम सत्य को स्वीकार करें तो हमारा अंतः संगर्ष दूर होकर हमारे प्रयत्नों में एकता और बल आ सकेगा। "
                                 दीनदयाल उपाध्याय
अतः अखंड भारत सांस्कृतिक सहअस्तित्व अवधारणा को स्वीकार करती है जो एकत्व के मार्ग को प्रशस्त करेगा। भारतीयता का जीवन दर्शन गूढ़ है। 'आत्मवत सर्वभूतेषु ' का चिंतन और इसपर आधारित जीवनदर्शन   केवल भारत में हुआ और उसने इस भूमि पर ही एक विशेष राष्ट्रवाद को मान्यता दी। भारत ने कभी किसी को विदेशी नहीं माना और 'वसुधैव कुटुम्बकम' की घोषणा   की; एक ऐसा परिवार , जहाँ सभी को समानता  प्राप्त हो ,कोई भी न किसी का शोषण करेगा और न किसी के अधिकारों का अपरहण। जिस सांस्कृतिक राष्ट्रवाद पर भारत की आस्था है ,वह आध्यात्मिक चेतना पर आधारित है और भारत अपने इसी आध्यात्मिक  और सांस्कृतिक चेतना का फैलाव करना चाहता है। 

Friday 25 December 2015







भागवत  पुराण का मंगलाचरण "सत्यम परम धीमहि " है और यही भारतीय संस्कृति की धरोहर है। सत्य को ही परमात्मा का स्वरुप बताया गया है।


'एकम सद विप्रा बहुधा वदन्ति' भारतीय संस्कृति की नीव है। ईश्वर  के अनेक स्वरुप हैं किन्तु तत्व एक ही है। दीपक के आगे जिस किसी रंग का शीशा रखेंगे ,उसी रंग का प्रकाश दिखाई देगा। इसी अवधारणा पर हम अनेकता में एकत्व का दर्शन करते है और सभी पर्व में सत्य और  शान्ति की अनुभूति करते हैं और यह ताकत हमें भारतीय संस्कृति की आध्यात्मिक ऊर्जा से प्राप्त होती है।



शांडिल्य मुनि ने अपने भक्ति सूत्र में लिखा है - तत्सुखे सुखित्वम् प्रेमलक्षणम्। अथार्त दूसरे के सुख में सुख का अनुभव करना ही सच्चे प्रेम का लक्षण है। सनातन धर्म हमें ऐसी ही मार्ग पर बढ़ने के लिए प्रेरित करता है।

क्रिसमस का पावन त्योहार भी हम इसी अवधारणा के तहत मनाते हैं ।

Thursday 24 December 2015


जो कल थे,
वे आज नहीं हैं।
जो आज हैं,
वे कल नहीं होंगे।
होने, न होने का क्रम,
इसी तरह चलता रहेगा,
हम हैं, हम रहेंगे,
यह भ्रम भी सदा पलता रहेगा।

सत्य क्या है?
होना या न होना?
या दोनों ही सत्य हैं?
जो है, उसका होना सत्य है,
जो नहीं है, उसका न होना सत्य है।
मुझे लगता है कि
होना-न-होना एक ही सत्य के
दो आयाम हैं,
शेष सब समझ का फेर, 
बुद्धि के व्यायाम हैं। 
किन्तु न होने के बाद क्या होता है,
यह प्रश्न अनुत्तरित है।

होना या न होना?
या दोनों ही सत्य हैं?
जो है, उसका होना सत्य है,
जो नहीं है, उसका न होना सत्य है।
मुझे लगता है कि
होना-न-होना एक ही सत्य के
दो आयाम हैं,
शेष सब समझ का फेर, 
बुद्धि के व्यायाम हैं। 
किन्तु न होने के बाद क्या होता है,
यह प्रश्न अनुत्तरित है।
प्रत्येक नया नचिकेता,
इस प्रश्न की खोज में लगा है।
सभी साधकों को इस प्रश्न ने ठगा है।
शायद यह प्रश्न, प्रश्न ही रहेगा।
यदि कुछ प्रश्न अनुत्तरित रहें
तो इसमें बुराई क्या है?
हाँ, खोज का सिलसिला न रुके,
धर्म की अनुभूति,
विज्ञान का अनुसंधान,
एक दिन, अवश्य ही
रुद्ध द्वार खोलेगा।
प्रश्न पूछने के बजाय
यक्ष स्वयं उत्तर बोलेगा।
- अटल बिहारी वाजपेयी 

MERRY CHRISTMAS !!

"जैसे राष्ट्र का आधार चिति होती है , वैसे ही जिस शक्ति से राष्ट्र की धारणा  होती है उसे विराट कहते हैं। विराट राष्ट्र की वह कर्म शक्ति है जो चिती से जागृत एवं संघटित होती है। विराट का राष्ट्र जीवन में वही स्थान है जो शरीर में प्राण का है। प्राण से ही सभी इंद्रियों को शक्ति मिलती है ,बुद्धि को चैतन्य प्राप्त होता है और आत्मा शरीरस्थ रहता है। राष्ट्र में भी विराट के सबल होने पर ही उसके भिन्न- भिन्न अवयव अर्थार्थ संस्थाएं सक्षम और समर्थ होती हैं। अन्यथा संस्थगात व्यवस्था केवल दिखावा मात्र रह जाती है। विराट के आधार पर ही प्रजातंत्र सफल होता है और राज्य बलशाली  है। इसी अवस्था से राष्ट्र की  विविधता उसकी एकता के लिए बाधक नहीं होती। भाषा ,व्वसाय आदि भेद तो सभी जगह होते हैं। किन्तु जहाँ विराट जाग्रत रहता हैं ,वहां संघर्ष नहीं होते है। हमें अपने राष्ट्र के विराट को  जागृत करने का काम करना हैं। "
                                                       दीनदयाल उपाध्याय
भारतीय  संस्कृति का  विलक्षण लक्ष्य है- 'अनेकता में एकता के सूत्र को प्रज्जवलित करकर रखना', और यही हिन्दू राष्ट्र की धरोहर है । अतः भारत में हम सभी त्योहारों को राष्ट्र की सांस्कृतिक धरोहर रूप में मानते हैं और यही हमारी सबसे बड़ी ताकत है। Merry Christmas!!

Wednesday 23 December 2015

"राष्ट्रीय  समाज राज्य से बढ़कर राष्ट्र की आराधना करें। सच्चा सामर्थ्य राज्य में नहीं राष्ट्र में ही रहता है। इसलिए जो राष्ट्र के प्रेमी हैं वे राजनीति के ऊपर राष्ट्रभाव का आराधना करते हैं।  राष्ट्र हीं एकमेव सत्य है। इस सत्य की उपासना करना सांस्कृतिक कार्य कहलाता है। राजनीतिक कार्य भी तभी सफल हो सकते हैं , जब इस प्रकार के प्रखर राष्ट्रवाद से युक्त सांस्कृतिक कार्य की शक्ति उसके पीछे  सदैव विद्यमान  रहें।"
                                                                                                                   ----------दीनदयाल उपाध्याय
राजनीति में लगातार विपक्ष की नकारात्मक भूमिका और संसद के कार्यों में रुकावट राष्ट्रीय दायित्व और राष्ट्र प्रेम में आयी कमी का सूचक है। अतः विपक्ष को उसकी कार्य संस्कृति में परिवर्तन लाने की जरूरत है ताकि वे संसद के कार्य में सहयोग करे न की प्रगति और विकाश कार्यों में बाधक बने। 
अत्रापि भारतम्  श्रेष्ठं जम्बूद्वीपे महामुने।
यतो ही कर्मभूरेषा ह्यतोअन्या भोगभूमयः।
                                            अथार्थ इस जम्बूद्वीप  में भी भारतवर्ष सर्वश्रेष्ठ  हैं क्योंकि यह कर्मभूमि है इसके अतिरिक्त अन्य  देश भोग भूमियाँ हैं। ....... विष्णुपुराण
   अतः राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था को शुष्क विवादों से बचना चाहिए और कर्म पथ पर ही अग्रसर होना चाहिए ताकि हम एक उन्नत राष्ट्र की सांस्कृतिक धरोहर को संभाल कर रख पाएँ । 

Tuesday 22 December 2015

वैभव की दीवानी दिल्ली
कृषक  -मेघ की रानी दिल्ली
अनाचार अपमान व्यंग्य की चुभती हुई कहानी दिल्ली
                                                  रामधारी सिंह दिनकर
किसे  न्याय मिला निर्भया या  अनाचार और अपमान से  प्रदूशित  समाज को ? क्या न्याय भी दिशाहीन हो गई है इस वैभव में ?

Sunday 20 December 2015

Today is a very auspicious day : the GITA JAYANTI. It was on this day that Lord Krishna gave the pious sermon of Bhagvad Gita. It is not just a religious scripture, but a guide to live a tranquil life, maintaining a comfortable balance between spritualism and materialism. Today Arjuna's despondency is prevailing in everyone's mind and its cure is within Bhagvad Gita. It should be  a spiritual guide for the whole world. Every single shloka of the Bhagwad Gita is a gem and contains a very deep meaning. Here is one such shloka:
यः          सर्वत्रानभिस्नेहस्तत्तत्प्राप्या       शुभाशुभम्  ।
नाभिनन्दति     न   द्वेष्टि  तस्य   प्रज्ञा   प्रतिष्ठिता  ॥
He who is unattached to everything and meeting with good or evil, neither rejoices nor recoils, HIS MIND IS STABLE.

Thursday 3 December 2015

राम मंदिर का  बनना सिर्फ आस्था का प्रश्न  नहीं वरन राम हमारे जीवन के आधार हैं। राम का चरित्र  हमें    मर्यादित जीवन जीने की कला सिखाती  है। राम राष्ट्र की संजीवनी हैं  जो राष्ट्र को आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करने एवं  राष्ट्र को सकारात्मक गति प्रदान करने में सहायक होते हैं तथा हमें  सत्मार्ग की ओर ले जाने का कार्य करते हैं।  अतः राम मंदिर का बनना इसलिए भी आवश्यक  है ताकि हम अपने सांस्कृतिक मूल्यो को जीवित रख राष्ट्र में आध्यात्मिक क्रांति लाएं । राम के नैतिक जीवन से राष्ट्र के सांस्कृतिक धरोहरके उत्थान का मार्ग प्रसस्त हो ।  राष्ट्रीय चरित्र  को राम चरित्र  की अविरल धारा से बांधकर हम  अपने सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रख सकते है।