"अखंड भारत देश की भौगोलिक एकता का ही परिचायक नहीं अपितु जीवन के भारतीय दृष्टिकोण का घोतक है ,जो अनेकता में एकता के दर्शन करता है। अतः हमारे लिए अखंड भारत कोई राजनीतिक नारा नहीं जो परिस्थिति विशेष में जनप्रिय होने के कारण हमने स्वीकार किया हो बल्कि यह तो हमारे सम्पूर्ण दर्शन का मूलाधार है।"
हमारे राष्ट्र की प्रकृति है - "अखंंड भारत " खंडित विकृति है. आज हम विकृति में आनंदनुभूति का धोका खाना चाहते हैं किन्तु आनंद मिलता नहीं। यदि हम सत्य को स्वीकार करें तो हमारा अंतः संगर्ष दूर होकर हमारे प्रयत्नों में एकता और बल आ सकेगा। "
दीनदयाल उपाध्याय
अतः अखंड भारत सांस्कृतिक सहअस्तित्व अवधारणा को स्वीकार करती है जो एकत्व के मार्ग को प्रशस्त करेगा। भारतीयता का जीवन दर्शन गूढ़ है। 'आत्मवत सर्वभूतेषु ' का चिंतन और इसपर आधारित जीवनदर्शन केवल भारत में हुआ और उसने इस भूमि पर ही एक विशेष राष्ट्रवाद को मान्यता दी। भारत ने कभी किसी को विदेशी नहीं माना और 'वसुधैव कुटुम्बकम' की घोषणा की; एक ऐसा परिवार , जहाँ सभी को समानता प्राप्त हो ,कोई भी न किसी का शोषण करेगा और न किसी के अधिकारों का अपरहण। जिस सांस्कृतिक राष्ट्रवाद पर भारत की आस्था है ,वह आध्यात्मिक चेतना पर आधारित है और भारत अपने इसी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक चेतना का फैलाव करना चाहता है।
हमारे राष्ट्र की प्रकृति है - "अखंंड भारत " खंडित विकृति है. आज हम विकृति में आनंदनुभूति का धोका खाना चाहते हैं किन्तु आनंद मिलता नहीं। यदि हम सत्य को स्वीकार करें तो हमारा अंतः संगर्ष दूर होकर हमारे प्रयत्नों में एकता और बल आ सकेगा। "
दीनदयाल उपाध्याय
अतः अखंड भारत सांस्कृतिक सहअस्तित्व अवधारणा को स्वीकार करती है जो एकत्व के मार्ग को प्रशस्त करेगा। भारतीयता का जीवन दर्शन गूढ़ है। 'आत्मवत सर्वभूतेषु ' का चिंतन और इसपर आधारित जीवनदर्शन केवल भारत में हुआ और उसने इस भूमि पर ही एक विशेष राष्ट्रवाद को मान्यता दी। भारत ने कभी किसी को विदेशी नहीं माना और 'वसुधैव कुटुम्बकम' की घोषणा की; एक ऐसा परिवार , जहाँ सभी को समानता प्राप्त हो ,कोई भी न किसी का शोषण करेगा और न किसी के अधिकारों का अपरहण। जिस सांस्कृतिक राष्ट्रवाद पर भारत की आस्था है ,वह आध्यात्मिक चेतना पर आधारित है और भारत अपने इसी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक चेतना का फैलाव करना चाहता है।
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