Wednesday 23 December 2015

"राष्ट्रीय  समाज राज्य से बढ़कर राष्ट्र की आराधना करें। सच्चा सामर्थ्य राज्य में नहीं राष्ट्र में ही रहता है। इसलिए जो राष्ट्र के प्रेमी हैं वे राजनीति के ऊपर राष्ट्रभाव का आराधना करते हैं।  राष्ट्र हीं एकमेव सत्य है। इस सत्य की उपासना करना सांस्कृतिक कार्य कहलाता है। राजनीतिक कार्य भी तभी सफल हो सकते हैं , जब इस प्रकार के प्रखर राष्ट्रवाद से युक्त सांस्कृतिक कार्य की शक्ति उसके पीछे  सदैव विद्यमान  रहें।"
                                                                                                                   ----------दीनदयाल उपाध्याय
राजनीति में लगातार विपक्ष की नकारात्मक भूमिका और संसद के कार्यों में रुकावट राष्ट्रीय दायित्व और राष्ट्र प्रेम में आयी कमी का सूचक है। अतः विपक्ष को उसकी कार्य संस्कृति में परिवर्तन लाने की जरूरत है ताकि वे संसद के कार्य में सहयोग करे न की प्रगति और विकाश कार्यों में बाधक बने। 

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