भागवत पुराण का मंगलाचरण "सत्यम परम धीमहि " है और यही भारतीय संस्कृति की धरोहर है। सत्य को ही परमात्मा का स्वरुप बताया गया है।
'एकम सद विप्रा बहुधा वदन्ति' भारतीय संस्कृति की नीव है। ईश्वर के अनेक स्वरुप हैं किन्तु तत्व एक ही है। दीपक के आगे जिस किसी रंग का शीशा रखेंगे ,उसी रंग का प्रकाश दिखाई देगा। इसी अवधारणा पर हम अनेकता में एकत्व का दर्शन करते है और सभी पर्व में सत्य और शान्ति की अनुभूति करते हैं और यह ताकत हमें भारतीय संस्कृति की आध्यात्मिक ऊर्जा से प्राप्त होती है।
शांडिल्य मुनि ने अपने भक्ति सूत्र में लिखा है - तत्सुखे सुखित्वम् प्रेमलक्षणम्। अथार्त दूसरे के सुख में सुख का अनुभव करना ही सच्चे प्रेम का लक्षण है। सनातन धर्म हमें ऐसी ही मार्ग पर बढ़ने के लिए प्रेरित करता है।
क्रिसमस का पावन त्योहार भी हम इसी अवधारणा के तहत मनाते हैं ।
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