सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का निचोड़ :
1)आध्यात्मिक चेतना का विकास :"सत्यम वद ,
धर्मम चर
स्वाध्यानम् प्रमदः
2) प्रगतशील जीवन दर्शन : "चरैवेति चरैवेति "
3) एकत्व का दर्शन : सम गच्छध्वम् ,सम वद्धवम् सम वो मनांसि जानताम।
देवाम भागम यथा पूर्वे ,संजानाना उपासते। ..(ऋग्वेद )
अर्थात मनुष्यों मिलकर चलो तथा मिलकर बोलो। तुम्हारे मन एक प्रकार के विचार करें। जैसे प्राचीन देवों और विद्वानो ने एकमत होकर अपने -अपने भाग्य को स्वीकार किया , उसी प्रकार तुम भी एकमत होकर अपना भाग्य स्वीकार करो।
4 ) सर्व कल्याण : सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः।
अतः हमें अपनी बौद्धिक मूर्छा का त्याग कर राष्ट्र की अस्मिता को बचाना होगा तथा कठोर तप ,सयंम से भारतीय ऋषियों द्वारा प्राप्त इस राष्ट्र के सृजन के कार्यों को और भी ढृढ़ करना होगा और यही संकल्प लेकर आगे बढ़ना होगा।
1)आध्यात्मिक चेतना का विकास :"सत्यम वद ,
धर्मम चर
स्वाध्यानम् प्रमदः
2) प्रगतशील जीवन दर्शन : "चरैवेति चरैवेति "
3) एकत्व का दर्शन : सम गच्छध्वम् ,सम वद्धवम् सम वो मनांसि जानताम।
देवाम भागम यथा पूर्वे ,संजानाना उपासते। ..(ऋग्वेद )
अर्थात मनुष्यों मिलकर चलो तथा मिलकर बोलो। तुम्हारे मन एक प्रकार के विचार करें। जैसे प्राचीन देवों और विद्वानो ने एकमत होकर अपने -अपने भाग्य को स्वीकार किया , उसी प्रकार तुम भी एकमत होकर अपना भाग्य स्वीकार करो।
4 ) सर्व कल्याण : सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः।
अतः हमें अपनी बौद्धिक मूर्छा का त्याग कर राष्ट्र की अस्मिता को बचाना होगा तथा कठोर तप ,सयंम से भारतीय ऋषियों द्वारा प्राप्त इस राष्ट्र के सृजन के कार्यों को और भी ढृढ़ करना होगा और यही संकल्प लेकर आगे बढ़ना होगा।
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