Friday 24 July 2015

क्या बिहार नव निर्माण  के पथ पर बढ़ रहा है ?


बिहार की उर्वरक  तथा बौद्धिक क्षमता अपनी  गौरवमय इतिहास में गोते  लगाने   की ओर बढ़  रही है जो अतुलनीय है और फिर से उसे  नव निर्माण की चादर ओढ़ने की और संकेत कर रही है। समय अपनी गति से आगे बढ़ता चलता  गया और बिहार अपनी राजनीतिक अकुशलता और प्रशासनिक अकुशलता का शिकार होता चला गया जिसका परिणाम हमारे सामने है।

       बिहार आज चुनावी वातावरण में अपनी असफलता की दहलीज पर खड़े  होकर एक ऐसे कुशल नेतृत्व की खोज में है जो इसे  फिर से जीवित कर विकास की ओर  आगे बढ़ाने  में तथा  उसकी उर्वरक और बौद्धिक  क्षमता का सही इस्तेमाल करने में  उसे सही दिशा दे । यहाँ  की मिटटी उपजाऊ है कमी है तो सिर्फ कुशल खाद देने वाले राजनीतिक दल की जो यहाँ  फिर से हरियाली लाए।

आज माननीय प्रधानमंत्रीजी ने अपने बिहार के दौरे पर बहुत ही महतवपूर्ण दिशा निर्देश दिया। उन्होंने कहा कि विकास का कोई पर्याय नहीं है और उन्होंने बिहार में सरस्वती का वास है कहकर बिहार की प्रतिभा को गौरवान्वित किया  है।उन्होंने केंद्र और राज्यों के बीच समन्वय स्थापित करने का पुरजोर प्रयास किया है जो एक सुखद सन्देश है बिहार को विकास की और ले जाने में।  अब तय हमें करना है कि  इसे क्रियान्वित करने में हम बिहार में ऊर्जा का संचार किसके हाथों में देकर करें।  विनाश  की राजनीति की शुरुआत तो बिहार में  श्री कृष्ण  सिंह के नेतृत्व के  बाद से ही हो गई  और इसका  स्वाद काफी लम्बे अरसे तक  इस राज्य ने चखा, और अब जबकि  सृजन की किरणे खड़ी होकर दस्तक दे रही हैं तो हमें जगकर इसका स्वागत करना चाहिए।


बिहार में पतझड़  लाने  वाले राजनीतिज्ञ  जिन्होंने बिहार की उर्वरक क्षमता को बंजर कर आज विकास की दुहाई देकर वोट की लालसा में पुनः जनता को  लुभाने की कोशिश कर रहे है। अब जागरूकता ऐसे लोगो में लानी  है जो अशिक्षित है, या जो जाति के आधार पर बटे हुए हैं, ताकि वे अपने वोट की कीमत समझें । बिहार की राजनीति  की सबसे बड़ी  दुर्बलता जातिवाद की विषैली विचारधारा रही है जिसका यहाँ  के राजनेताओ ने भरपूर लाभ उठाया है। वोटोँ का बटवारा जाति और धर्म के आधार पर बटता चला गया जिससे बिहार में मतदान व्वयहार में कोई परिवर्तन नहीं आया। विभिन्न माध्यमों  से जागरूकता लाने की जरुरत है ताकि मतदान व्वयहार में परिवर्तन आये  और जाति  और मजहब से ऊपर उठकर विकास के आधार पर हमांरे वोटों  का सदुपयोग हो सके।

      अगर बिहार को हमें नवनिर्माण की ओर ले जाना है तो जनता को जागृत होना ही पड़ेगा और अपनी  भावनात्मक बहाव को  जाति और मजहब से ऊपर उठाना  ही होगा ताकि हमारे राजनेता इसे अपनी वोट बैंक की कुंजी न समझे अन्यथा बिहार की दयनीय हालत के लिए हम स्वतः जिम्मेदार होंगे। अगर बिहार को वास्तविक रूप से नवनिर्माण की ओर ले जाना हैं तो हमें वोट  देने की पुरानी पद्धति को बदलनी होगी। राज्य का विकास भावनाओं के आधार पर नहीं होगा  बल्कि सकारात्मक सोच, सुविचार तथा तार्किक मूल्यों को अहमियत देकर हम सही नतीजे पर पहुंचे और अपने मताधिकार का सही प्रयोग करें।

         इस नवनिर्माण पथ पर बिहार को लाने के लिए जरुरी है की हम इस राज्य  का भविष्य  और  इसकी बागडोर ऐसे हाथो में दें  जो यहाँ विकास की लहर लाये  तथा ईमानदारी और सत्यनिष्ठा से इस प्रदेश का विकास  करें और उन चीजो  की भरपाई करें जिसे सत्ता की  लोलुपता और स्वार्थ की राजनीति ने इस प्रदेश को बंजर कर रखा है तथा इस भूमि को दूषित  कर इसकी क्षमता का सृजन  न कर इसका विनाश किया है। जरुरी है यहाँ  की बौद्धिक  क्षमता का सही इस्तेमाल हों।

आज ज्यादातर विश्वविद्यालयों में शिक्षक नहीं है और अगर हैं  भी तो कितनी ईमानदारी से अपनी बौद्धिक कुशलता का प्रयोग छात्रों के हित  में कर रहें हैं यह कहना मुश्किल  है। सरकारी स्कूलों  की हालत तो अति दयनीय हैं। मिलाजुलकर  शिक्षा की गुणवत्ता यहाँ  काफी निम्न स्तर की  है। दूसरी तरफ यहाँ  कोई भी नया  उद्योग नहीं खुल रहा।  यहाँ  पर विनिवेश करने में भी लोग डरते है जिसका कारण सामाजिक असुरक्षा  तथा बुनयादी सुबिधाओं का अभाव है। सामाजिक समरसता भी तो तभी आयगी जब गरीबी ,अशिक्षा एवं आर्थिक दुर्बलता दूर होगी।


बिहार में पर्यटन   के भी ऐसे कई क्षेत्र हैं जिनका ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक महत्व है लेकिन सरकार की गहन उदासीनता के कारण ये जगह वीरान पड़े  हैं। हाल ही में मैंने सारण  जिले में स्थित गौतम स्थान  एवं दधीचि आश्रम की यात्रा की।  दोनो ही स्थान अपनी  सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टि कोण से इस राज्य का गौरव है लेकिन सरकार की उदासीनता के कारण  वीरान पड़े हैं। बिहार में ऐसे कई क्षेत्र हैं जो  पर्यटन की दृष्टि  से काफी महत्वपूर्ण हो सकते हैं तथा जिसका ऐतिहासिक महत्व भी है। पर्यटन आय का एक ऐसा श्रोत है जिससे राज्य अपना  विकास कर सकता है तथा बिहार जैसे राज्य की आर्थिक स्थिति सुडौल  हो सकती है। अगर आने वाली सरकार भविष्य  में इसकी और ध्यान दे तो बिहार में पर्यटकों  की संख्या बढ़ेगी। हम स्पेशल स्टेटस की मांग कर रहे है वह अपनी जगह ठीक है लेकिन दूसरी तरफ हम अपनी क्षमता का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं  और सिर्फ केंद्र के सामने  हाथ फैलाये  बैठे हैं अपने  स्वाभिमान को भूलकर।

   राज्य  के नवनिर्माण में नौकरशाही की भी अहम भूमिका होती है जिसका की पूरी तरह से राजनीतिकरण हो चुका है और वे दलगत राजनीति की प्रतिबद्धता के शिकार हो चुके हैं। अगर समाज का हर वर्ग अपनी जिम्मेदारियों को पूरी निष्ठा, ईमानदारी, लगन और इन सबसे से ऊपर पूरी तटस्थता के साथ काम करे तो वह दिन दूर  नहीं  जब बिहार का खोया हुआ अतीत फिर से वापस  आ सकता है।

     
   बुद्ध , चाणक्य, आर्यभट्ट, दिनकर  आदि कई ऐसे महापुरुषों की  यह  सांस्कृतिक  भूमि अपने अतीत के गौरव को पाना चाहती है और इसके लिए जरूरी है हम चुनाव की इस शंखनाद को बिहार के विकास की चुनौती के रूप में स्वीकार करें तथा तैयार हो जाएँ  और इस राज्य की बागडोर ऐसे हाथो में सौपे जो इसे चिरस्थाई विकास की और ले जाए। 

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