राष्ट्र का विचार लेकर आगे बढे तो एक और एक मिलकर दो नहीं ग्यारह होंगे। व्यक्तिगत ,दलगत या वाद्गत कोई विचार लेकर चलने से प्रगति नहीं हो सकती। राजनीती आखिर राष्ट्र के लिए ही है। यदि राष्ट्र का विचार छोड़ दिया ,यानी राष्ट्र की अस्मिता ,उसके इतिहास ,संस्कृति ,सभ्यता को छोड़ दिया तो राजनीती का क्या उपयोग ? राष्ट्र का स्मरण कर कार्य होगा तो सबका मूल्य बढ़ेगा। राष्ट्र को छोड़ा तो सब शून्य जैसा ही है। ....... दीनदयाल उपाध्याय
उच्च शिक्षण संस्थाओं में जहाँ से छात्र शिक्षित और दीक्षित हो कर भी राष्ट्र की अस्मिता को पहचान न पाए और राष्ट्र द्रोह की ओर अग्रसर हो यह तो दुर्भाग्य की बात है। शिक्षा में संस्कृति और अध्यात्म का समागम न हो तो छात्र दिशाहीन होंगे और अपने सभ्यता और संस्कृति से वंचित रहेंगे । अतः आती उदारवाद और आती सहिष्णु से राष्ट्र की अस्मिता की रक्षा सम्भव नहीं जिसे भारतीय दर्शन ने भी उचित नहीं माना है।
उच्च शिक्षण संस्थाओं में जहाँ से छात्र शिक्षित और दीक्षित हो कर भी राष्ट्र की अस्मिता को पहचान न पाए और राष्ट्र द्रोह की ओर अग्रसर हो यह तो दुर्भाग्य की बात है। शिक्षा में संस्कृति और अध्यात्म का समागम न हो तो छात्र दिशाहीन होंगे और अपने सभ्यता और संस्कृति से वंचित रहेंगे । अतः आती उदारवाद और आती सहिष्णु से राष्ट्र की अस्मिता की रक्षा सम्भव नहीं जिसे भारतीय दर्शन ने भी उचित नहीं माना है।
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