Wednesday 10 February 2016

'मैं' नहीं 'हम ' है मजबूत राष्ट्र का मंत्र
"प्रत्येक व्यक्ति 'मैं ' और 'मेरा ' विचार त्यागकर 'हम ' और 'हमारा ' विचार करे। अन्यथा कई बार देखा जाता है कि राष्ट्र के लिए जान हाजिर है और जीवन में सब कार्य व्यक्ति का विचार ही करता रहता है। इसमे न व्यक्ति का भला है और न ही समष्टि का। वास्तव में समष्टि के लिए कार्य करना यानि धर्माचरण करने की शिक्षा होती है। उसमे भी संस्कार डालने होते हैं। इन संस्कारों को प्रदान करना ही राष्ट्र का संगठन करना है। "  ......... दीनदयाल उपाध्याय
 भारतीय दर्शन का मूलमंत्र यही है अतः यह राष्ट्र की संजीवनी भी है और इसकी सभ्यता संस्कृति और इसकी अस्मिता की रक्षा करना ही हर भारतीय का राष्ट्र धर्म है। 

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