Sunday 28 February 2016

वे कैसे बुझदिल रहे होंगे  जो,,,,,,माँ दुर्गा पर टिप्पणी   और विश्लेषण करते हैं , माँ भारती  का आँचल मैला करके उनकी तौहीन करते हैं   , जिनके  अश्रु वीर सैनिको के कफ़न पर प्रवाहित न हुए ,जो संसद की गरिमा को बार बार  ठेस पहुचाते हैं  और इन सबको वे अभिव्यक्ति  की स्वतंत्रा और अपना सामर्थ्य समझ रहे हैं । ... धिक्कार  है ऐसे बुझदिलों  पर जो विध्वंस को अपनी राजनीतिक सत्ता की तितिक्षा को पूर्ण करने का हथियार बना रहे है अगर सामर्थ्य का प्रदर्शन  ही करना है तो सृजन की  बुनियाद तो रखना सीख लें । 

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