मोरारी बापू के आनंद मंत्र में दो सूत्र मुझे बहुत ही समसामयिक लगी। पहला आनंद मंत्र दान का। दान का आशय मात्र धन का दान नहीं है , बल्कि अपने पास जो भी शुभ हो वह दूसरे को देना दान कहलाता है। भगवान शंकर महादानी है , इसलिए वे प्रसन्न हैं। दूसरा आनंद मंत्र है अमान। अमान रहना चाहिए। संसार में मान की अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए। शंकर अमान है , इसलिए प्रसन्न है।
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